ये वादियाँ या वो वादियाँ न जाने कहाँ से आई तू ,
इस तपते मन की तन्हाई में मनभावन घटा सी छाई तू ,
जो तुझको था यूँ तरसाना फिर कुछ बूँदे क्यूँ बरसाई तू ,
क्यूँ तेरी पगली बातों से मेरा मन हरसाई तू ,
उन मोती जैसे अश्रु से क्यूँ मेरा मन पिघलाई तू ,
काश कि में वो नग होता जिसके तन में समाई हो तू ,
पर न जाने किस आंगन में नदियाँ सी जा इठलाई तू ,
ये वादियाँ या वो वादियाँ न जाने कहाँ से आई तू |