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Saturday, March 18, 2017

यादें ये तेरी . . . . . . . . . .



ये वादियाँ या वो वादियाँ न जाने कहाँ से आई तू ,

इस तपते मन की तन्हाई में मनभावन घटा सी छाई तू ,

जो तुझको था यूँ तरसाना फिर कुछ बूँदे क्यूँ बरसाई तू ,

क्यूँ तेरी पगली बातों से मेरा मन हरसाई तू ,

उन मोती जैसे अश्रु से क्यूँ मेरा मन पिघलाई तू ,

काश कि में वो नग होता जिसके तन में समाई हो तू ,

पर न जाने किस आंगन में नदियाँ सी जा इठलाई तू ,


ये वादियाँ या वो वादियाँ न जाने कहाँ से आई तू |

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